Saturday, August 8, 2015

आखिर


तुम यूँ ही करते रहना
अपनी बेबसी का ज़िक्र
अपनी हार छिपाने के लिये
ढूंढना रोज़ नये बहाने
असफलताओं के दौर के लिये
तलाशना एक कमज़ोर कड़ी
विफलताओं की ओर से नज़र चुराने को
रचना रोज़ एक नयी फ़ालतू परिभाषा
अपनी बेवक़ूफ़ियों के लिये
रोज़ हर किसी को देना एक नया तर्क
जब कोई समझाने की कोशिश करे
ओढ़ लेना अपनी किस्मत को सर से पाँव तक
मान लेना हार बिन आजमाए
यही करना जो करते आये हो तुम आज तक
और बैठे रहना फिर यूँ ही
एक बदलाव के इंतज़ार में
अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव तक
मुझे है यक़ीन
कुछ नहीं तो कम से कम
बेचारगी का एक तमगा
जीत ही लोगे तुम
ख़ुद की खातिर
.....आखिर

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