Friday, September 7, 2012

सच में....



प्रेम का इतिहास,जुगराफिया
फिजिक्स,केमिस्ट्री
कुछ नहीं पता.
जानती हूँ बस इतना
कि जब वो नहीं होता
तो सब बेस्वाद हो जाता है.

किसी काम में मन नहीं रुचता
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
हरेक लम्हा भारी
सब ओर एक शख्स तारी .
जिसने खुद कभी प्रेम प्याला चखा नहीं
वो इसके तिलिस्म को जान सकता नहीं
जादू है इसमें कुछ जो नज़र आता नहीं
किताबों में पढ़ने से इसका सबक आता नहीं

सच में .....
प्रेम ,आस्वाद है.....
जिसे खुद चखे बिना नहीं जाना जा सकता .

17 comments:

  1. वाह! जब प्रेम के बारे में पढ़ने
    में इतना स्वाद है,तो उसे चखने के
    तो क्या कहने.

    कबीर की वाणी याद आ रही है

    'उठा बगूला प्रेम का तिनका उड़ा आकाश
    तिनका तिनके से मिला,तिनका तिनके पास'

    प्रेमपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार निधि जी.

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    1. बहुत सही कहा,आपने.राकेश जी,बड़े दिनों बाद आपकी टिप्पणी पढ़ने को मिली ...अच्छा लगा .

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  2. प्रेम हमेशा से ही महसूस करने की भावना रही रही है ...अतुलनीय, आस्वाद..अपरिमित.

    सुन्दर रचना.

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    1. पसंद करने के लिए,थैंक्स.

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  3. ढाई आखर प्रेम का, देता है सन्ताप।
    प्रेम के इस खेल में,बढ़ जाता है ताप,,,,,

    RECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,

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    1. मज़ा भी देता है यह प्रेम....

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  4. खुद चखे बिना नहीं जाना जा सकता ... जिया नहीं तो क्या जानोगे

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. फिर मैं कैसे जान सकती हूँ ? चखा जो नहीं :)

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  7. प्रेम का इतिहास,जुगराफिया
    फिजिक्स,केमिस्ट्री
    कुछ नहीं पता.
    जानती हूँ बस इतना
    कि जब वो नहीं होता
    तो सब बेस्वाद हो जाता है.

    क्या करेंगी और कुछ जानकर ... आपकी डूबन हमें भी डुबा देती है ...आपका बहुत बहुत शुक्रिया !

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  8. बहुत सुन्दर रचना..
    दिल को छू लेनेवाली रचनाये होती है आपकी...
    शानदार ..
    :-)

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    1. तहे दिल से शुक्रिया!!

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