Friday, September 14, 2012

क़सम लगती है



मुहब्बत अपनी इबादत ओ धरम लगती है
इनायतें तेरी खुदा का करम लगती हैं

मुझको लगा था कि मैं भूल चुकी हूँ तुझको
फिर तेरे ज़िक्र पे क्यूँ ज़रा नब्ज़ थमती है

तू मुझे छोड़ गया तो कोई तुझसा न मिला
तेरी परछाईं है जो हमक़दम सी चलती है

तुम्हारे हाथ से जब छूट गया हाथ मेरा
अब खुदाई भी बस एक भरम लगती है

तुम गए तो अब अच्छा नहीं लगता कुछ भी
यूँ तो तन्हाई में यादों की बज़्म सजती है

जो तोड़ गए थे दिल मेरा मुहब्बत में कभी
सुना तो होगा कि उनको भी क़सम लगती है

9 comments:

  1. तुम्हारे हाथ से जब छूट गया हाथ मेरा
    अब खुदाई भी बस एक भरम लगती है

    सच, उसके बाद कुछ भी मानना, सहेजना, समेटना सभी तो भ्रम ही लगता है...अब किसी और के ऊपर कोई वादा नहीं सज सकता, विश्वास कहाँ से जन्म लेगा ?

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  2. शैफाली....यकीं का उठ जाना...सबसे खराब होता है.किसी पर भी उसके बाद विश्वास करना मुश्किल हो जाता है ,बहुत.
    अपने आप पे से भी यकीं खत्म हो जाता है

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  3. तुमसे शुरू,तुमसे सिलसिला,तुमसे खत्म-मेरी ज़िन्दगी बस इतनी है

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  4. प्यार करके ...उसे कोई भूल पाया है क्या ?????

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    1. प्यार भुला दिया जाए.....तो वो प्यार कहाँ?

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  5. हम बहर, रदीफ़, काफिया, वज़न....कुछ नहीं जानते पर हमें शाईरी पढ़ना सुनना भाता है ...हाँ इस मामले में हमारे कान इतने नाज़ुकमिजाज़ हैं कि बुरी,लंगडी-लूली शाईरी को फ़ौरन से पेशतर सुनने से मना कर देते हैं ...पर हाँ ..निधि जी आपके शेर पसंद हैं मुझे...और ये ग़ज़ल तो बेहतरीन लगी ...मेरे लिए हासिल-ए-ग़ज़ल शेर ये है ...

    मुझको लगा था कि मैं भूल चुकी हूँ तुझको
    फिर तेरे ज़िक्र पे क्यूँ नब्ज़ ज़रा थमती है

    ख़रामा ख़रामा आगे बढ़ने के लिए मेरी दुआएं आपके पीछे पीछे चलती रहेंगी ..

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    1. तुम मुझे जानो...काफी है.तुम्हारी दुआएं ..साथ हैं और उनमें यूँ ही शामिल रखना...बस इतना ही कहना है.

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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