Friday, March 30, 2012

कहाँ -कहाँ से चली आती हैं



कोई नहीं है आसपास
तुम्हारे ख्याल और मेरे सिवा
यादों की इस दस्तक से खुश थी ..
तुम्हारे साथ गुज़रे दिन और रात
न जाने कहाँ -कहाँ की बात
कौन -कौन सी मुलाक़ात
सब के सब याद आ रहे थे .

अचानक ...सब कुछ धुंधला सा गया
गला भी रुंध सा गया
आँखों में आंसू थे
गले में भी कुछ अटका सा था .
यादों में एक यह बहुत बड़ी खराबी है.
चीटियों की तरह आराम से
धीरे-धीरे कतार में नहीं आती .
बस,चली आती हैं ताबड तोड़ बिना किसी क्रम के .

तुम्हारे साथ बीते खुशनुमा पलों को
अभी जीना ही शुरू किया था
कि बीच में से ...
लाइन तोड़ के
चली आई उस एक शाम की याद ...
उसी जगह हाथ पकड़ के ले गयी मुझे
जहां खडी रह गयी थी,मैं
जब तुम्हारा हाथ छूटा था
राहें अलग-अलग हुई थीं हमारी.
आखिरी बार मिले थे हम.

मन की खुशियों को काफूर करना कोई इन यादों से सीखे.

Thursday, March 29, 2012

प्रेम की दुनिया


कहीं.....
कोई तो रास्ता होगा....
जहां हमारी मजबूरियाँ बीच में न आयें.
तुम और मैं ... चल सकें ..साथ-साथ....
शुरू से आखिर तक .
कोई मोड ऐसा न आये
जहां बिछडना पड़े,हमें .
अपनी मसरूफियत की दुहाई देके
तुम देर से न पहुँचो ,जहां ..

प्रेम की दुनिया क्यूँ इसी उम्मीद पे ...
इस काश पे टिकी रहती है,हमेशा?

Tuesday, March 27, 2012

तेरा ख्याल...




दर्द की ये सारी लकीरें
कितनी भी गहराए.........
ग़मों के ये अँधेरे
कितने भी स्याह हो जाएँ ...
तकलीफों की ये आंधियां
चाहें ,सब उड़ा ले जाएँ ....
किस्मत की बेरुखी
कितना ही परेशां कर जाए ...
पर,
जहां,जब,जिस सूरत
मेरे करीब.
तेरा ख्याल चला आता है...
..
सच कहती हूँ ,मैं .....
मेरे चारों ओर
उत्सव सा माहौल हो जाता है
खुशियाँ की न जाने कहाँ से
जैसे झड़ी सी लग जाती है
आँखों के कटोरों में
धूप उतर आती है
और इस अनमने से मन में
इन्द्रधनुष सा छा जाता है.

Wednesday, March 21, 2012

आदतें


एक कश लेते हो
धुंए का छल्ला बना
हवा में उड़ाते हो
क्या उस वक्त कभी...
मेरा अक्स दीखता है धुंए में ????
तुम्हारी उँगलियों के बीच फंसी सिगरेट
निकाल फेंकने को तैयार ,मेरी उंगलियां .
तुम्हारी उँगलियों के बीच जहाँ
मेरी उँगलियां होनी थीं ...
सिगरेट कैसे फंसा लेते हो??

व्हिस्की के घूँट
हलक से नीचे उतारते समय
जीभ को महसूस होती है कड़वाहट
अंदर तक जब जलाती है सनसनाहट
इस सब के बीच मेरे चेहरे की तल्खी
जो केवल तुम्हारे साथ से जाती थी
याद आती है क्या ???

मानो या न मानो पर,
तुम्हारे जिस्म को नुक्सान पहुंचाने वाली
ये सारी आदतें
मेरी रूह पे ....एक आघात सी हैं
मन पे एक निशान सी हैं .


जिस्म से रूह का सफर
तुम कब समझोगे..????

Monday, March 19, 2012

मन की सैर



आज,यूँ ही,
खाली बैठे -बैठे
मन में ख्याल आया कि
चलो,आज...
मैं अपने मन की सैर करने निकल पडूँ .

मन में एक दुनिया है....सबसे छुपी ,
यादों की उस दुनिया में निकल पडी
हर जगह एक ही चेहरा दिखायी देता है
परेशान हूँ कि क्यूँ... बस
तुमसे  जुड़ी बातें,सौगातें दिखाई देंती हैं.

क्या करूँ???मेरे मन में...
ज़रा सी भी जगह खाली नहीं है.
किसी के लिए कोई कोना नहीं है .
वो शख्स,उसकी बातें ...
जी से बेघर हो ,जाएँ कहीं ...
तब तो कुछ और घर करे .
लाख जतन कर चुकी,मैं भी
पिछली इबारत मिटती ही नहीं
इस ही वजह से
नए को जगह कभी मिलती नहीं.

सच कहूँ....तो, मैं खुद भी मिटाना नहीं चाहती
तुम से जुड़ी एक भी याद ...आधी भी बात .
तुम्हारे  साथ जी नहीं सकी
इनके साथ जी तो रही हूँ....
और
मरूंगी भी इनके साथ .
मुझे कुछ नहीं कहना इसके सिवा
कि,
इसके लिए तो मुझे....
तुम्हारी परमिशन भी नहीं चाहिए .

Monday, March 12, 2012

वक्त



आज, कुछ यूँ कर लेते हैं
तुम मिलने आना
तो यह घडी .
जो टंगी है न दीवार पे ...हटा दूंगी
तुम्हारे हाथ की घडी भी
.. छुपा के रख दूंगी कहीं .
हम लोगों के बीच
समय क्यूँ अपनी पैठ बनाए .
तुम्हारे आते ही...
यूँ भी...
वक्त की नब्ज़
बढ़ जाती है
मेरी धडकनों की तरह .

मुझे लगता है,
शताब्दियों से.........
प्रेम का सबसे बड़ा दुश्मन
यह मुआ वक्त ही है.

Friday, March 2, 2012

एक सवाल



...एक शख्स
जिसे हर एक पल नज़रें ढूंढती है
जिसके इर्द-गिर्द दुनिया घूमती है
जिसकी एक मुस्कान पे जां न्यौछावर
जिसका एक आंसू बहे तो रो लूँ सागर
हर लम्हा मन में उसकी सलामती की चाह
मांगती हूँ दुआओं में उसकी आसान हो राह
हर पल बस जिसकी हँसी की है कामना
खत्म न हो उसकी खुशियों का खजाना.

पर,
वही ,शख्स
जब किसी और के साथ खुश है
तो,मैं खुश क्यूँ नहीं हो पाती हूँ?
खुद को धिक्कारती हूँ
कि ...
उसकी खुशी चाहने का दम भरती हूँ
तो उसकी खुशियों का क्यूँ गम करती हूँ??
जब तक वो मेरे साथ के साथ जुडी हों
उसकी खुशियों की इच्छा तब ही तक क्यूँ है???
मेरा आप भी समझाता है मुझे
कि प्यार है ....वो दिल में उसके रहेगा
किसी और के साथ होने से प्यार
थोड़े ही आखिरी सांसें लेने लगेगा.

पर,
पता नहीं क्यूँ वो साथ की चाह
वो काश ...
क्यूँ बार-बार उभर आता है?
क्या करूँ ...खुश नहीं हूँ................
पर,सच कहूँ तो खुश होना चाहती हूँ
न जाने क्या रोकता है,मुझे ...
कई दिनों से यह सवाल कौंध रहा है??
कोई उत्तर दिल-दिमाग को नहीं सूझ रहा है .
कोई तो बताए .....
खुश रहने का उपाय.

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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