Tuesday, February 28, 2012

केंद्रबिंदु



जब भी उसको याद करती हूँ..
दिल में एक खालीपन
साथ साथ महसूस करती हूँ .
रिक्त सा है ..मर सा गया है कुछ
उसके बगैर .
गले में कुछ अटका सा रहता है
आँखों में दरिया सा भरा रहता है
मुझमें ही ...मुझसे ही..
कोई हर वक्त खफा सा रहता है .
तुम्हारा नाम लिख कर
उसमें जब खो जाती हूँ
तब कहीं जाकर
खुद को खोज पाती हूँ .

कहाँ हो ?कैसे हो?
कब हुए खफा ...क्या हुई खता
मुझे सच कुछ नहीं पता .
कैसे जीती हूँ?क्यूँ जीती हूँ
हरेक आती जाती सांस से पूछती हूँ.


मेरी हर भावना ,हर संवेदना
तुम से शुरू हो तुम तक ही जा पाती है
तुम ही केंद्रबिंदु
तुम ही परिधि भी हो .

प्यार तो दोनों को हुआ था ...
पर मैं अकेली क्यों हूँ ,
सच कहना
तुम्हें भी ऐसा ही सा कुछ होता है क्या,कभी?

Tuesday, February 21, 2012

झूठी ..



मेरी सब बातों में सबसे ज्यादा
मेरा सच बोलना,मेरी बेबाकी
तुम्हें पसंद आयी थी ,पर...
आज मैं मान लेती हूँ कि
अब अक्सर झूठ बोलती हूँ मैं
जब कहती हूँ तुमसे ..कि
तुम्हारे किसी और के साथ होने से
मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता
तुमसे मिले कई दिन गुजर जाएँ
तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता
तुमसे बात नहीं होती
तो मेरा दिन आराम से गुज़रता है
तुम साथ न भी हो तो मुझे
खालीपन ज़रा सा भी नहीं खलता

काली स्याह उदास रातों में
तुम ख़्वाबों में नहीं आते हो
जब यादों की बदली छाती है मन पे
तो कभी नहीं रुलाते हो
मेरे पास बहुत काम हैं सच्ची ..
तुम्हारी फ़िक्र करने के अलावा
आजकल मुझे सब लोग अच्छे लगते हैं
बस एक तुम्हारे सिवा

"कुछ नहीं" और "पता नहीं"कहती हूँ
तो उसका मतलब वही होता है
तुम परेशां होते हो ,ग़मगीन होते हो
तो मुझे ज़रा भी दर्द नहीं होता
तुम्हारे बगैर..
अपनी कसम खा के कहती हूँ
मैं बहुत खुश रहती हूँ
तुम्हारे मेरे पास ना होने पे भी मैं
बिलकुल नोर्मल जीवन जीती हूँ

मैं फिल्में देखती हूँ,गाने सुनती हूँ
और तुम्हें.. यूँ ही बस भूल जाती हूँ
कभी शराब के नशे में,
और कभी किताबों में
खुद को डुबो कर तुम्हें भी डोब देती हूँ
मेरा कभी भी मन नहीं करता
कि तुम वो तीन लफ्ज़ कहो
नहीं चाहती कि तुम मिलने आओ
और रुक जाओ मेरे कहने भर से

कभी नहीं चाहा कि तुम कहो कि
मैं हर एक काम से ज़रूरी हूँ तुम्हारे लिए
इच्छा ही नहीं हुई कि तुमसे सुनूं
तुम्हारी धडकनों और रूह में हूँ.. मैं
यह जानने का कभी मन नहीं हुआ
कि तुम मुझे चाहते हो कितना
पूछना नहीं चाहती
कि क्या तुम भी उतने ही अकेले हो
मेरे बिना ,जितनी मैं हूँ ,तुम्हारे बिना
सच कहती हूँ .....
झूठी हूँ मैं.....पक्की झूठी !!

Thursday, February 16, 2012

रिश्ते का नाम



तुम कहते हो
तुम्हारी फ़िक्र न करूँ ...
मैं खुश रहूँ ....
क्या लगते हो तुम मेरे,अब?
जो मैं तुम्हारी परवाह करूं .

मैं क्या करूँ???
तेरे दर्द की सारी लकीरें चल के
सीधी मुझ तक आ जाती हैं.
तेरी आँखों से बह के अश्क
मेरी आँखों में आ जाते हैं .
उदासी जब कभी तुम्हें घेरती है
साथ मुझे भी आगोश में ले लेती है .
तुम्हारी ये जो सारी तकलीफें हैं
मुझमें ही आकर पनाह लेती हैं .
सारे ये जो गम हैं न ,तुम्हारे
मुझमें आकर ठहर जाते हैं.

सब........
बंटता है मेरे-तुम्हारे बीच
चाहा-अनचाहा ,कहा-अनकहा ,सुना-अनसुना .
फिर भी पूछते हो तुम
इस दर्द के रिश्ते का नाम .

Wednesday, February 15, 2012

चक्रव्यूह




मेरा दिमाग आजकल दिल पे खूब बिगडता है ..
कहता है..मना करता है ...समझाता है
पुरजोर कोशिश करता है
कि
मैं इस जी के जंजाल में ना पडूँ .
इक बार फंसी तो निकल नहीं पाउंगी
चक्रव्यूह है ये ,अन्दर ही रह जाउंगी

मैं क्या करूँ ..
हैरान हूँ ...मैं अपनी इस हालत पे
कुछ खींच रहा है मुझे अपनी ओर
बस ही नहीं चल रहा ,मेरा....खुद पे
किसी और के हाथ में हो गयी है मेरी डोर.


दिल उतरता जाता है,डूबता जाता है
इश्क के इस दरिया में...
दिमाग अलग खडा मुस्कुराता जाता है ...
मैंने तो मना किया था
अब तुम जानो....तुम्हारा खुदा जाने
कि तुम डूबे ,मरे या पार हुए.

Thursday, February 9, 2012

कमबख्त इश्क


मुझे जब से इश्क हुआ है
मैं भी ढूंढ रही हूँ
एक ऐसी घडी
एक ऐसा कैलेंडर
जो मुझे सही वक्त .....तारीख ...महीना ...साल बता दे
सब कुछ उलट पुलट है
अस्त व्यस्त है
जब से ये कमबख्त इश्क आया है जीवन में....
तुम्हें कुछ पता चले...
तो मुझे भी बताना
दिन ,महीने, साल के बारे में ....

Tuesday, February 7, 2012

परेशान ...



तुम जब भी बात करते हो मुझसे
एक खनक सी होती है..
एक खुशी सी होती है ...
आवाज़ में तुम्हारी ,
उन पलों में...
मुझसे बात करने की
बस,मेरे साथ होने की

आज,वो नहीं थी...
कई बार पूछा तुमसे
कि,आखिर बात क्या है?
तुम्हारा हर बार वही जवाब
कुछ भी नहीं ...सब ठीक है .
पर,
मैं जानती हूँ
कुछ है.. जो ठीक नहीं है .

तुम्हारे न बताने से..
हम दोनों परेशान हैं .
तुम परेशान हो किसी बात को लेकर
और
मैं परेशान हूँ ,तुम्हें लेकर.

Saturday, February 4, 2012

सारी रात...



सारी रात ...
तेरे आने का इंतज़ार .
मन पे कुहासे की परत चढ़ने लगी है
रात भी गहरी और काली होने लगी है
ठहरी हुई ओस की बूँदें बहने लगी हैं
निराशा से भारी इस रात में क्या करूँ?
तुझे याद करूँ?
मिलन के सपने बुनूं ?
या ..बस,तारे गिनूँ ?

Wednesday, February 1, 2012

बेशकीमती




वो सारे पल ..जो तेरे साथ गुज़रे ...
बेशकीमती हैं ,मेरे लिए.
मेरे यह कहते ही ..तुम्हारा पूछना ...ऐसा क्यूँ ,भला ???

जान मेरी....
तुम्हें पता तो है
जब बिछडेंगे ..हम-तुम
तब,
ये ही तो ..
हमें जीने की ताकत देंगे
इनके ही सहारे
हम सारी ज़िंदगी काटेंगे
इन लम्हों की खुशनुमा यादें
ताउम्र...आँखों से मोती चुरा
लबों पे तबस्सुम सजाएंगी
कितने भी दूर हों हम
एक दूसरे के करीब ले आयेंगी

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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