Friday, September 30, 2011

उदासीन


तुमसे प्यार करना कितना सरल था ..
तुमसे नाराज़ हो जाना कितना आसान
रूठने में तुमसे पल भर लगाऊं
क्षण भर में फिर मैं मान जाऊं
तुम्हारे दुःख में दुखी होना
तुम सुखी हो तो मेरा सुखी होना
....आसानी से हो जाता था ये सब

तुम्हारी दुनिया अलग हो गयी है
मेरी दुनिया से
पर,पता नहीं कौन सी डोर जोड़े हुए है
मुझे,आज भी तुमसे ??.
कोशिश में हूँ..........
कि
तुम किसी और को चाहो
और मुझे खराब न लगे ..
तुम दूरी मुझसे बढ़ाओ
मुझे रत्ती भर न खले ..
तुमसे उदासीन हो पाऊँ ...

Wednesday, September 28, 2011

मन करता है



बहुत बार मन करता है
कि
सबके बीच रहते हुए भी
मैं,निपट अकेले हो जाऊं .
वक्त से अपने लिए
कुछ क्षण चुरा लाऊँ .
उन पलों में न कोई और बोले
न हाथ धरे,न छुए
पूछे नहीं चुप्पी का कारण कोई
न सवाल जवाब हो कोई .
बस ....
अकेले लेटे हुए मैं
तुम्हारी यादों में
डूबती तरती जाऊं
सब कुछ भूल के
पार उतरती जाऊं

Saturday, September 24, 2011

प्रेम की मोहर




तुम आज बहुत याद आ रहे हो...
तुम्हारे प्रेम की मोहर
रंग बदल रही है
शुरू में जो लाल थी
धीरे धीरे...काली..बैगनी..नीली...हरी होती हुई
पीली पड़ रही है ..
अब ,चले आओ ...
मेरे बदन पे ,तुम्हारे प्यार के चिह्न नहीं होते
तो मैं खुद को पहचान नहीं पाती हूँ
लगता है किसी और के जिस्म में फंसी हुई है आत्मा मेरी
आओ न....
प्रेम के इस ब्रह्माण्ड में ...
मेरी आत्मा को तृप्त करके मुक्त करने ..

Tuesday, September 20, 2011

टूटी चीज़


कोई चीज़ टूट जाती है
तो हम उसे फेंक देते हैं ..
उसका इस्तेमाल छोड़ देते हैं .
वैसा ही कुछ हुआ मेरा साथ
जो तुम पर था मेरा विश्वास
तोड़ा गया वो तुम्हारे ही हाथ.
पर,
टूटने के बाद भी
मैं न तो छोड़ पायी तुम्हें
ना ही फेंक पायी विश्वास को
दूर कहीं,बेकार जान के .

मैंने सच्चे दिल से चाहा
कि...
यकीन कायम हो,फिर से .
उसे मरता न देखूं बुझे हुए मन से .

जुड जाए...
जैसे,
टाँके लगा कर भर दिए जाते हैं घाव
कुछ वक्त बाद ....
निशाँ भले ही रह जाए देह पर
पर टाँके जज़्ब हो जाते हैं .
वैसे ही ...
स्नेह के टांकों से जोड़ते हैं यकीन को,
क्यूंकि,मेरी चाहत बस इतनी सी है
कि हमारा रिश्ता ऐसा हो
जिसमें जुड़ने की सदा गुंजाइश हो .

Friday, September 16, 2011

तुमसे मिल भी नहीं पाती ..


मन करता है ....
तुमसे मिलूँ ,ढेरों बातें करूँ
पर,फिर.........
ज़माने का डर
रोक लेता है मुझे .

इस भय को जो किसी तरह
मैं पार कर लेती हूँ ..
तो,मेरे कदम रोक लेती है
मेरी शर्म,मेरी ही हया
उसपे संस्कारों की बाधा

इतने तो बंधन हैं आज भी ..
फिर क्यूँ सब कहते हैं
कि वक्त बदल गया है.
स्वतंत्र है नारी ,
हर काम कि उसे है आजादी .
जबकि मैं तो बिना भय के
तुमसे मिल भी नहीं पाती
हरदम यही खटका
कि किसी ने देख लिया तो क्या होगा
बिना किसी अपराधबोध के
तुमसे प्यार भी नहीं कर पाती हूँ .

Friday, September 9, 2011

सफाई पसंद नहीं हूँ



बिस्तर ...
उसपे,सिलवटों से भरी चादर .
चादर सही करती हूँ....
तुम्हें याद करती हूँ.
सख्त नापसंद हैं तुम्हें ,
ये सिलवटें .
फिर यह चादर पे हों
या मेरे चेहरे पर
बिस्तर के सिरहाने के पीछे
दिखे...
ढेरों जले
जल्दी से साफ़ किये
तुम्हें नहीं पसंद
ये जाले दीवारों पे हों
या यादों के जाले मन पर .

मुझे ये सिलवटें भी पसंद हैं
और वो भी ...
जो तुम्हारें माथे पे पड़ती हैं.
मुझे ये जाले भी पसंद हैं
और तुम्हारी यादों के जाले भी
जिनसे घिरी हुईं हूँ मैं .

मैं सफाई पसंद नहीं हूँ न ,तुम्हारी तरह.
कि पिछला सब धो पोंछ कर हटा पाऊं
घर से भी और मन से भी .

Tuesday, September 6, 2011

मैं यह नहीं जानती.....


मैं यह नहीं जानती.....
तुम्हें,कैसा लगता है,मुझसे मिलकर
पर,मैं जब भी तुमसे मिलती हूँ
पास बैठ के बतियाती हूँ
ये वक़्त.....
बादल बन के जैसे उड़ने लगता है
....पानी की तरह बहता जाता है
पारे की बूंदों की तरह फिसलता जाता है .
लाख कोशिशों के बाद भी पकड़ में नहीं आता है .
और आते ही ...न जाने कब
तुम्हारे जाने का वक़्त हो आता है .

Saturday, September 3, 2011

नींद


क्या याद है ...वो अपना बचपन
जब माँ सोती थी ,दोपहर में
तो,जबरन लिटा लेती थी पास में .
वो तो सो जाती थी
पर,जागते रहते थे भाई...मैं और तुम .
उठते थे चुपचाप,बिना कोई आवाज़
फिर भागना,दौड़ना,झूलना,खेलना
इन सब के आगे भला ...
कैसी नींद ,कौन सा सोना?

बड़े हुए..यौवन की मस्ती छायी,
प्यार ने ली अंगडाई ,
प्यार ने खुद ब खुद आंखों से नींद भगायी ,
दिल चुराया किसी ने साथ नींद भी चुराई .

प्यार का जब उतरा बुखार......
जीवन की दौड़ धूप थी
उस में भागते रहने से
थकान तब लगने लगी .
सोने की चाह जागने लगी
काम करके पैसा कमाने में यूँ डूबे
की याद नहीं............
कब नींद पूरी कर के पलंग से हों उतरे .

फिर आया बुढापा ..
अब समय नहीं कटता है
पैसा भी है ,कोई नींद चुराने वाला भी नहीं
खेलने कूदने का भी ज़माना बचा नहीं
पर..................................
अब नींद आती नहीं
पहले मैं दूर उससे भागी
अब वो पास आती नहीं

अब वो शायद एक बार ही आयेगी
हमेशा के लिए सुला जाने
तब तक .....उसका इंतज़ार ...

Thursday, September 1, 2011

तुमसे मेरा क्या नाता है...


तुमसे मेरा क्या नाता है या तुम मेरे क्या लगते हो
जब,किसी दिन कोई मुझसे ये प्रश्न कर लेता है
तब.............
उसके बाद के मेरे कई दिन
इसी सोच में बीत जाते हैं की आखिर तुम कौन हो मेरे?

तुम कौन हो?
इसको तो मैं स्वयं भी परिभाषित नहीं कर पाती हूँ
तुम्हारे लिए ,
अपने इन भावों को खुद व्याख्यायित नहीं कर पाती हूँ.

मुझे बचाते हो जब खतरों से ..
उस पल संरक्षक से लगते हो,तुम
बताते हो जब आगे बढ़ने का सही मार्ग मुझे ..
तब एक सहृदय शिक्षक से लगते हो ,तुम .
जी नहीं पाती तुम पास नहीं होते हो,जब...
तब अपने जीवन से लगते हो ,तुम .
तुम्हें रूठा जान जब दिल डूबता है मेरा ..
उस क्षण दिल की धड़कन से लगते हो ,तुम .
तुम्हारी सौम्य छवि को देखती हूँ जब ...
तो,एक संपूर्ण दर्शन से लगते हो,तुम .
साथ मेरे बांटते हो मेरी खुशियाँ और ग़म
उस समय सच्चे सखा से लगते हो,तुम .
तारीफ़ करते हो जब भी कभी मेरी ..
उस वक़्त काबिल कद्रदां से लगते हो,तुम.
मुझे ,तुम कभी संरक्षक,कभी सहचर कभी सजन से लगते हो
कभी रक्षक,कभी हमसफ़र,अपने जीवन से लगते हो,तुम ..

हरेक परिस्थिति में कुछ नए से लगते हो
हर बार एक नयी तरह से परिचय देते हो
और मैं दुविधा में फंस जाती हूँ
कि
इन सब में से तुम्हें क्या संबोधन दूं
तुम्हारा मेरा रिश्ता क्या है ??
तेरे मेरे बीच कौन सा नाता है
इसके लिए बस यही उत्तर दिमाग में आता है
कि तुम मेरे लिए,मेरे इस जीवन के लिए .........
...सब कुछ हो.
मेरे केंद्र बिंदु,मेरी परिधि हो तुम .
तुमसे शुरू हो कर ज़िंदगी जहां खत्म
होती है वो मेरी एक आरज़ू हो तुम

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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