Thursday, February 24, 2011

तथाकथित प्यार

मैं और तुम कभी अजनबी थे 
मिलते-मिलते प्रेम का हुआ जन्म 
बढे इन मुलाकातों के सिलसिले
भावनाएं ह्रदय की लगी जुड़ने 
आने -जाने लगे 
एक दूसरे के ख़्वाबों-ख्यालों में
मैं और तुम से हो गए "हम"
.........उस प्रेम की डोर को अब तुमने तोड़ दिया  है
यहाँ बीच राह में लाकर मुझे छोड़ दिया है.
मैंने इस सब के बाद भी तुमसे कुछ कहा नहीं
पर इसका यह अर्थ कतई नहीं
क़ि मुझे कुछ बुरा लगा ही नहीं.........
मुझे दुःख तो इतना हुआ था
क़ि शब्द ...निशब्द हो गए थे,
आँख में आंसू भर गए थे
पर,उससे भी अधिक दुःख मुझे तबसे है
जब उस दिन तुम्हें यह कहते सुना
क़ि जिसका जन्म हुआ है,उसकी मृत्यु  निश्चित है  
हमारे प्यार ने भी तो जन्म लिया था
इसलिए
वह भी अपना समय संपूर्ण होने पर समाप्त हो गया 
.वो भावनाएं जो कभी जन्मी थीं 
आज पड़ी हैं मृत्यु-शैया पर अपनी 
क्योंकि
प्यार भी मर जाता है वह है अमर नहीं
तब मुझे क्रोध आया तुम पर
और तुम्हारे इस तथाकथित प्यार पर.....
तुमने जिस प्यार की बात की है
वस्तुतः वह स्वयं भी जीने लायक नहीं है
उसमें तो भावनाओं की मूक अभिव्यक्ति का स्थान नहीं है 
वरन उसकी सीमा शरीर से शुरू होकर उसमें ही है सिमटती 
क्योंकि.............................
तुम्हारा प्रेम है,प्रेम शरीर का 
इसलिए शरीर की तरह वह भी मर जाता है
जबकि मेरा प्यार है प्यार आत्मा का  
जो की अजर,अमर है मेरी आत्मा सा 
जो सत,चित,आनंदस्वरूप है
जो स्वयं साक्षात ईश्वर रूप है.   
 

Sunday, February 20, 2011

यादों का फ़लसफ़ा

तुम्हारी यादों का फ़लसफ़ा
मुझे कभी समझ नहीं आया 
क्यूंकि .....................
कभी याद आती 
तो अपने साथ ख़ुशी  का अम्बार ले आती है
मेरा तन-मन प्रफ्फुलित कर जाती है
और कभी याद आती है 
तो बेबात आँख भर आती है
बेमौसम ही बरसात चली आती है  
क्यूँ ?????????????
ऐसे ,बस यूँ ही  
मूड खराब हो जाता है और कभी-कभी
अचानक ही सब ठीक हो जाता है .
ये मूड क्या है?
इसका तुम्हारी यादों से क्या नाता है 
फिर  इसका उत्तर खोजने लगी हूँ मैं  ..........   

Thursday, February 17, 2011

दिल में स्थान ..........

तुम्हारे साथ
तुम्हारे हाथों को थामे
मैं चली जा रही थी.....
की
हवा का एक झोंका आया 
वो अपने साथ धूल के कुछ कण भी लाया 
उनमें से एक शायद तुम्हारी आँखों में आ पडा 
उस समय तुमने मेरे हाथ से अपना हाथ छुड़ाया 
और अपनी आँख तुम मलने लगे.
तुम्हारा वो हाथ छुड़ाना मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा
पर,फिर तुमने जैसे ही मुझसे कहा,
की देखो मेरी आँख में ,
कुछ दिखता है क्या?
और तब..............
तुम्हारे हाथ के छूट जाने का दुःख 
परिणत हो गया 
तुम्हारी आँखों में झाँकने के सुख में.
मैंने देखा,
पता है,क्या देखा?
मुझे दिखाई दी अपनी छवि तुम्हारी आँखों में
मन  हुआ चिल्ला कर सबसे कहूं
कि
मैं बसी हूँ तुम्हारी नज़रों में 
पर ,मैं कह नहीं पायी
कह पाती उससे पहले ही
मेरे चेहरे कि लाली देख
मेरे मन को पढ़ 
कह डाली तुमने वही बात .
मैंने तुम्हारी नज़रों में अपना स्थान बना लिया है
काश...........इसको खुशनसीबी न जाना होता
वरन,तुम्हारे ह्रदय में बसने कि कोशिश की होती
क्यूंकि......
नज़रों में और दिल में स्थान देने में अंतर है ...............
ये फर्क उस दिन समझ  नहीं पायी
की तुम्हारी नज़रों में बसने का अर्थ मात्र यह है
कि आँखों में तुम्हारी तब तक ही मेरी छवि रहेगी 
जब तक मैं विद्यमान हूँ समक्ष तुम्हारे
और जिस पल मैं तुमसे दूर हुई
 मिट जायेगी ये छ्व भी उसी क्षण से .
आज,
ये आता है विचार मन में बारम्बार 
कि काश,तुमने नज़रों के साथ
मुझे दिल में भी जगह दी होती.
तो,कितनी ही दूर तुम मुझसे चले जाते 
मुझे रहता यह विश्वास सदा 
कि चले जाओ तुम चाहें कहीं
मेरी छवि जो अंकित हैं दिल पे तुम्हारे
वह न धूमिल होगी  
न ही मिटेगी कभी 
मेरे ख्याल रहेंगे तुम्हारे दिल में
हमेशा ........सदा ...........





   

Tuesday, February 15, 2011

स्पर्श

जाड़े की गुनगुनी धूप में
जब बैठी हुई हूँ मैं
और
तुम चुपके से आकर
अपने ठन्डे हाथों से मुझे छूकर
छिप जाते हो अक्सर
तब मुझे चिढाने के लिए किया गया
वो ठंडी -ठंडी हथेलियों का स्पर्श
मेरे अन्दर तक  गर्माहट भर जाता है
ऐसी गर्मी जो शायद दिन भर ..............
धूप में बैठे रहने पर भी नहीं मिल पाती
वाकई ,तुम्हारी छुअन का प्यार भरा एक क्षण
दिन भर बेज़ार
धूप में बैठने से ज्यादा कारगर है


Wednesday, February 9, 2011

तुम्हारा चले जाना

लाख कोशिशों के बाद भी
रेत का बंद मुट्ठी से
बिना रुके
फिसलते जाना
ठीक वैसा ही है ..................
जैसे मेरे लाख चाहने के बाद भी
तुम्हें रोक न पाना
और तुम्हारा मेरी ज़िन्दगी से
हमेशा के लिए चले जाना  

ज़िन्दगी मेरी .........

ज़िन्दगी मेरी .........इक किताब
ज़िन्दगी मेरी .........इक किताब
तुम ............उस किताब का वो पन्ना
जो मुड़ा हुआ है ...उपरी किनारे पर
यह याद दिलाने के लिए
कि
किताब चाहें जहाँ से शुरू हो
या जहाँ कहीं हो ख़तम
पर अभी
जहाँ तुम हो
वहीँ से मुझे आगे बढ़ना है
और जहाँ रुकूँगी
वहाँ फिर तुम मौजूद रहोगे
कोने पे मुड़े हुए 

Wednesday, February 2, 2011

अपना

मेरी अपनी असुरक्षाएं हैं.............
अपनी ही कुछ कुंठाएं हैं .................
साथ ही कुछ व्यथाएं हैं ............
मेरे अपने कुछ दर्द हैं ................
अपने ही से कुछ ग़म हैं ................
इन के साथ ही है ...........................
........................तुम्हारा  प्यार
हाँ ,बस यही कुछ है
अपना कहने को मेरे पास 

पेपरवेट

पेपरवेट 
सवेरे से लेकर रात तक
रात से फिर सवेरे तक ,
मेरा काम ..........
तुम्हारी ज़िन्दगी व्यवस्थित करना.
मेरा अस्तित्व .........
जैसे एक पेपरवेट
जिसे बस कागजों के ऊपर रख दिया जाता है
जिससे  कागज़  उड़े  -बिखरे नहीं .
अपना कहने को ............
उसके पास कुछ नहीं
एक कागज़ भी नहीं .

Tuesday, February 1, 2011

उपहार

आज कि इस पावन  बेला पर,
क्या दे दूं मैं उपहार तुम्हें
मेरे पास न कोई जेवर
न है कोई खजाना जिससे संभव हो तुम्हें कुछ दे पाना
न ही है मेरे पास कोई धन - दौलत
जिससे कर सकूं तुम्हारी खिदमत
इसलिए ,चलो,
मैं......
तुम्हें एक संसार दूं
जहां बस प्यार ही प्यार दूं
दे दूं तुम्हें अपनी सारी मुस्कानें
अपनी सारी खुशियाँ ,सारे अफ़साने.
सारी दुआएं तेर नाम लिख दूं
हरेक मेरी चीज़ पे तुम्हें अधिकार दे दूं.
सुनहरे सपने का संसार दे दूं,
या कहो तो हकीकत का व्यापार दे दूं.
अपनी सारी यादें दे दूं
अपना सारा विश्वास दे दूं
और अपनी हरेक सांस दे दूं.
मेरा दुःख बस मेरे पास रहे
बाकी मेरा सब,तेरे नाम रहे.
आत्मा तक मेरी अर्पण तुम्हें
मेरा संपूर्ण समर्पण तुम्हें .
मुझे याद जो करना हो कभी
तो याद इसी से कर लेना तभी
कि तुम जहां भी रहो इस जहां में
मेरी आराधना ,मेरी शुभकामनायें
मेरा विश्वास,मेरा हरेक प्रयास
मेरी यह जान,मेरा ईमान
मेरी आत्मा................
मेरा साथ ,सदा तुम्हारे साथ है.



सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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